तेलंगाना | वारंगल
तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष की अग्रणी और बहुजन क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चाकली एलम्मा (26 सितम्बर 1895 – 10 सितम्बर 1985) की पुण्यतिथि पर आज पूरे प्रदेश में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए गए।
जन्म और पृष्ठभूमि
चाकली एलम्मा का जन्म वारंगल जिले के कृष्णापुरम गांव में ओरुंगती मल्लम्मा और सेलू के घर हुआ। धोबी समुदाय से होने के कारण उन्हें ‘चाकली’ उपनाम मिला, जो उनके संघर्ष और जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गया। बचपन से ही उन्होंने सामंतवाद और ऊंची जातियों के भेदभाव का सामना किया।
संघर्ष और बलिदान
1950 के दशक में सामंती शोषण के खिलाफ उन्होंने आवाज़ उठाई। इस संघर्ष में उनके पति और बेटों को जेल जाना पड़ा, घर लूटा गया, बेटी का उत्पीड़न हुआ, फसलें जला दी गईं। फिर भी एलम्मा निडर होकर गरीबों के भूमि अधिकार, आजीविका और महिला समानता के लिए लड़ती रहीं।
उन्होंने कहा था –
“यह मेरी ज़मीन है, यह मेरी फसल है, डोरा कौन होता है जो इसे छीन ले? यह तभी संभव है जब मैं मर जाऊं।”
तेलंगाना सशस्त्र संघर्ष में योगदान
एलम्मा ने कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़कर आंध्र सभा की सदस्यता ली और तेलंगाना किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। वह सामंती प्रभुओं और निजाम शासन के अत्याचारों के खिलाफ जनता को संगठित करने वाली पहली महिलाओं में से थीं।
उनकी प्रेरणा से सैकड़ों महिलाएं अपनी जमीन और सम्मान के लिए खड़ी हुईं। उनके संघर्ष ने स्वतंत्र भारत में भूमि सुधार नीतियों को लागू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सम्मान और विरासत
एलम्मा की स्मृति में 2015 में तेलंगाना में उनकी कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई। 2022 से उनकी जयंती को राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से मनाया जाने लगा।
10 सितम्बर 2024 को उस्मानिया महिला महाविद्यालय का नाम बदलकर वीर नारी चाकली एलम्मा महिला विश्वविद्यालय रखा गया। उसी दिन उनकी पोती श्वेता को राज्य महिला आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया।
समापन
चाकली एलम्मा सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी नहीं, बल्कि दलित-बहुजन महिलाओं और किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी संघर्ष गाथा हमें याद दिलाती है कि ज़मीन, सम्मान और समानता के लिए लड़ाई कभी व्यर्थ नहीं जाती।
आज उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें कोटिशः नमन करते हैं।
✍ रिपोर्ट – डॉ. नरेन्द्र दिवाकर
ब्यूरो रिपोर्ट – सुशील कुमार दिवाकर (मो. 7752873639)