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जब बच्चे दूर जाएँ, तो माता-पिता क्यों रह जाते हैं अकेले? वृद्धाश्रम क्यों बढ़ रहे हैं?

लेख: सियाराम शर्मा, अध्यक्ष, अखिल भारतीय विकास परिषद, अहमदाबाद

भारत, जो सदियों से बुज़ुर्गों का आदर करने वाला समाज रहा है, आज उसी व्यवस्था में एक गहरी दूरी का सामना कर रहा है। यह दूरी केवल दूरी का नहीं—भावनात्मक, सामाजिक और संरचनागत बदलाव की दूरी है।

बढ़ती उम्र, घटते परिवार

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 60-साल और उससे ऊपर की आबादी लगभग 104 मिलियन थी, जो केवल 8.6% थी; लेकिन संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि यह संख्या 2026 तक 173 मिलियन और 2050 तक 20% तक पहुँच जाएगी ।

2022 में भारत में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या लगभग 149 मिलियन थी, जो 2050 तक बढ़कर 347 मिलियन होने की भविष्यवाणी है । इस विशाल वृद्धि की वजह से पारंपरिक देखभाल व्यवस्था ढहती जा रही है।

एक ओर जहाँ बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, वहीं परिवारों का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। संयुक्त परिवारों की जगह अब छोटे-से-छोटे एकल परिवारों ने ले ली है।

युवा पलायन — बुजुर्गों पर अकेलापन

36% बुजुर्गों के कम-से-एक बच्चे पहले से ही पलायन कर चुके हैं, और 35% बुजुर्ग “empty-nesters” हैं—यानी बच्चे घर से बाहर रहते हैं ।

2001 से 2011 के बीच बुजुर्ग प्रवासियों की संख्या 34.6 मिलियन से बढ़कर 53.8 मिलियन हो गई—a 55% की तेज़ वृद्धि ।

ऐसे बुजुर्गों के लिए सामाजिक समर्थन में कमी (e.g., दोस्त-परिवार से जुड़ाव) और भावनात्मक समर्थन में गिरावट स्पष्ट रूप से देखी गई है ।

हालाँकि प्रवासी बच्चों द्वारा भेजे गए पैसे कुछ भौतिक सुविधाएँ दे सकते हैं—लेकिन मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। “बिट्स में बेहतर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य, लेकिन सामाजिक और मानसिक भावनात्मक स्वास्थ्य में गिरावट” जैसे अध्ययन मिले हैं ।

वृद्धाश्रमों का विस्तार—शर्म का सच

एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कई बुजुर्ग झाड़ियों में, अस्पतालों में या ट्रेन स्टेशनों पर छोड़ दिए जाते हैं । यह हमारे सामाजिक मूल्य की एक दर्दनाक तस्वीर है।

भारत में वर्तमान में लगभग 728 वृद्धाश्रम हैं; जिनमें से 325 मुफ्त, 95 सशुल्क और लगभग 110 दोनों प्रकार की व्यवस्था वाले हैं ।

यह स्पष्ट संकेत है कि पारंपरिक पारिवारिक देखभाल व्यवस्था टूट रही है, और वृद्धाश्रम—अनचाही लेकिन जरूरी सुविधा—बढ़ रही है।

सकारात्मक पहलें और समाधान

1. सरकार और समाज की सक्रिय भूमिका

स्नह धाम, इंदौर: जून 2025 में उद्घाटन, यह 18 करोड़ रुपये की लागत से तैयार सुरक्षित, सम्मानजनक आवासीय सुविधा है जिसमें खान-पान, चिकित्सा, मनोरंजन, काउंसलिंग और सुरक्षा शामिल हैं ।

यू.पी. में वरिष्ठ नागरिक केंद्र: आगरा, झांसी, कानपुर, लखनऊ जैसे शहरों में इन केंद्रों का स्थापना, जहां बुज़ुर्गों को सामाजिक और स्वास्थ्य-समर्थन मिलता है ।

नागपुर का Jiwhala Club 60+: यह क्लब एक “दूसरा परिवार” बनकर बुजुर्गों को भावनात्मक सहारा देता है—महीनावारी जन्मदिन समारोह, भोजन, संगीत, बातचीत से मन में खुशी और belonging की भावना जगाता है ।

देशव्यापी वरिष्ठ नागरिक समुदाय: “Senior living” मॉडल तेजी से उभर रहा है; अनुमान है कि 2029 तक देश में 70,000 से अधिक वरिष्ठ आवास इकाइयों की मांग होगी । देयकों और नीति प्रोत्साहन (जैसे हरियाणा और महाराष्ट्र में है) इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ाएँगे ।

2. Kanun aur Social welfare

Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007: यह कानून बच्चों और संबंधियों पर माता-पिता की देखभाल का कानूनी दायित्व थोपता है। इसमें वृद्धाश्रम की स्थापना का प्रावधान, पोषण, आवास, चिकित्सा देखभाल और कानूनी राहत के प्रावधान शामिल हैं ।

Vayomithram (केरल): यह स्वास्थ्य-समर्थन पहल बुजुर्गों को मोबाइल क्लिनिक, पल्लिएटिव केयर और हेल्प डेस्क सुविधाएं उपलब्ध कराता है ।

बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, परिवारों की संरचना बदल रही है, और भावनात्मक दूरी बढ़ रही है—इससे जो खालीपन और असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है, वह सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक समस्या है।

हमें सिवाय कानून और योजनाओं के, संवेदनशीलता और संस्कार की पुनरावृत्ति की भी ज़रूरत है:

बच्चों में एक दूसरे के प्रति सम्मान और आदर का बीज बोना।

संयुक्त परिवार और सामाजिक जुड़ाव को फिर से सक्रिय करना।

वृद्धाश्रम, समर्थन केंद्र और स्वास्थ्य-सेवा संस्थाओं को अधिक मानव-केन्द्रित बनाना।

माता-पिता ने हमें न केवल जीवन दिया, बल्कि संस्कार, प्यार और मार्गदर्शन भी दिया। बुढ़ापे में उन्हें सम्मान, सुरक्षा, और भावनात्मक सहारा मिलना हमारा नैतिक दायित्व है—यह केवल उनका नहीं, बल्कि पूरे समाज का उत्तरदायित्व है।

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