( अश्विन अग्रवाल)
हमें बताया गया कि हम आज़ाद हैं। लेकिन मेरे परदादा सिंध से आते वक्त रास्ते में मार दिए गए। उनका शव तक नहीं मिला। हम रो भी नहीं पाए क्योंकि उस दुःख को सुनने वाला कोई नहीं था।”
यह शब्द हैं डिंपल वरदानी के, जो आज सिंधी विस्थापितों की पीढ़ी की आवाज़ बनकर देश के सामने विभाजन की खामोश त्रासदी को उठा रही हैं।
डिंपल कहती हैं,हम दशकों तक पाकिस्तान में रहे, फिर भारत लौटे — लेकिन यहां भी कोई पूछने वाला नहीं था। 1990 में आए, 43 साल बाद। ये वही भारत था, हमसे बहुत दूरी थी।”
डिंपल मानती हैं कि उन्हें पहली बार ‘अपना दुख राष्ट्रीय स्मृति में दर्ज होता’ तब महसूस हुआ जब 2021 में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ की घोषणा हुई।
मोदी जी की उस घोषणा से पहले 70 साल की चुप्पी ने सबसे ज़्यादा चोट पहुंचाई” हमारी बात कभी न पाठ्यपुस्तकों में थी, न संसद में। हम नागरिक होकर भी अदृश्य थे।”
भाजपा प्रवक्ता डॉ. यज्ञेष दवे से बातचीत
हमने जब इस मुद्दे पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. यज्ञेष दवे से बात की, तो उन्होंने कहा:
विभाजन केवल सीमाओं का पुनर्निर्धारण नहीं था — यह भारत की आत्मा पर गहरी चोट थी। लाखों परिवार उखड़ गए, और दशकों तक राजनीतिक सुविधा के कारण उनकी पीड़ा को नकारा गया।”
उन्होंने कहा कि विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस राजनीतिक फैसला नहीं, नैतिक दायित्व था। भाजपा ने उन आवाज़ों को जगह दी, जिन्हें आज़ादी के बाद भुला दिया गया था। विभाजन कोई भूगोल नहीं, आत्मा पर आधात था।
CAA के संदर्भ में उन्होंने जोड़ा:
नागरिकता संशोधन कानून उन लाखों विस्थापितों की पहचान की बहाली है, जो भारत के ही थे, लेकिन सरकारी फाइलों में अनजान। यह सांस्कृतिक पुनरुत्थान है, न कि कोई राजनीतिक एजेंडा।”
कांग्रेस का रुख: ‘इतिहास को वर्तमान की राजनीति से न जोड़ें’
कांग्रेस प्रवक्ता ने इस संवाददाता से फोन पर कहा:
हम विभाजन की त्रासदी को राजनीतिक औजार बनाना हमें मंज़ूर नहीं। विभाजन एक जटिल प्रक्रिया थी, सभी राष्ट्रवादी नेताओं ने उस परिस्थितियों को ध्यान रखकर सामुहिक फैसला लिया था, जिसे आज की राजनीति के चश्मे से देखना खतरनाक है।”
लेकिन जब उनसे पूछा गया कि
“70 वर्षों में किसी भी सरकार ने विभाजन पीड़ितों के लिए कोई राष्ट्रीय स्मृति दिवस श्रद्धांजलि अर्पित करने में 55 साल बाद मोदी सरकार द्वारा 13 अगस्त 2021 राष्ट्रीय धोषणा हुई किस तरह देख रहे हो?? कोग्रेस प्रवक्ता ने फोन कटने से पहले उन्होंने इतना कहा मोदी सरकार के11 सालों में रोजाना किसानों के बेरोजगारों, मंहगाई जैसे मुद्दे पर स्मृति काला दिवस है।। किन्तु श्रद्धांजलि पर एक शब्द नहीं बोल पाये।
विभाजन की पीड़ा: आंकड़ों से परे, अनुभवों की गहराई में
वर्ष अनुमानित मौतें विस्थापित लोग
1947 10–20 लाख 1.4 करोड़+
अन्य हज़ारों महिलाओं के अपहरण, बलात्कार सांस्कृतिक जड़ों का विस्थापन
राष्ट्रीय विमर्श की मांग:
इतिहास को सिर्फ किताबों में नहीं, चेतना में जिंदा रखें।
इस विशेष संवाद के बाद स्पष्ट है —
विभाजन की पीड़ा सिर्फ अतीत की बात नहीं, यह आज की पहचान, न्याय और राष्ट्रवाद के प्रश्नों से जुड़ी हुई है।
डिंपल वरदानी जैसे युवा प्रतिनिधि आज उस खाली जगह को भर रहे हैं, जो दशकों तक खाली रही।
वहीं भाजपा इस मुद्दे को सांस्कृतिक न्याय कह रही है,
और कांग्रेस इसे राजनीति से प्रेरित स्मृति मान रही है।
लेकिन सवाल अब भी वही है: क्या यह देश उन आवाज़ों को सुनेगा जो 70 साल तक खामोश रहीं ? या एक बार फिर इतिहास को ‘अनदेखा’ करने की गलती दोहराएगा ?
संवाददाता गुजरात प्रवासी न्यूज़ अहमदाबाद