रुड़की/हरिद्वार।
आज भारत अपनी आज़ादी की 79वीं वर्षगांठ मना चुका है। इन 79 वर्षों में भारतीय खेल जगत ने उतार-चढ़ाव भरे कई दौर देखे हैं। स्वतंत्रता से पूर्व खेल को सेना की धरोहर माना जाता था। उस दौर में मेजर ध्यानचंद और मिल्खा सिंह जैसे दिग्गजों ने अपने प्रदर्शन से विश्व पटल पर भारत को नई पहचान दिलाई।स्वतंत्र भारत में 1951 में नई दिल्ली में आयोजित पहले एशियाई खेलों में भारत ने शानदार प्रदर्शन कर दुनिया का ध्यान खींचा। क्रिकेट में लाला अमरनाथ के नेतृत्व ने भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई। हॉकी टीम ने ओलंपिक में सर्वाधिक स्वर्ण पदक जीतकर विश्व पटल पर अलग छाप छोड़ी।
1983 में कपिल देव के नेतृत्व में भारत ने पहली बार क्रिकेट विश्व कप जीतकर पूरे देश में खेलों के प्रति आकर्षण की लहर पैदा की। वहीं 2008 बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा ने पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतकर देश का सिर गर्व से ऊँचा किया।आज भारत के उद्योगपति, सेलिब्रिटी और समाज के विभिन्न वर्ग खेलों के प्रोत्साहन में योगदान दे रहे हैं। क्रिकेट, कबड्डी और बैडमिंटन जैसे खेलों को नई पहचान मिल रही है। इसके बावजूद हम अभी तक अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाए हैं।विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका मुख्य कारण यह है कि सीबीएसई को छोड़कर अधिकांश राज्यों ने खेल को अनिवार्य विषय नहीं बनाया है। जब तक विद्यालय स्तर पर शारीरिक शिक्षा को मजबूती नहीं मिलेगी, तब तक योजनाओं का लाभ अंतिम खिलाड़ी तक नहीं पहुँच पाएगा।
आज अस्पतालों में बढ़ते मरीजों की एक बड़ी वजह यह भी है कि युवा वर्ग नियमित शारीरिक गतिविधियों से दूर होता जा रहा है।चीन में खेलों को संविधान और शिक्षा प्रणाली से जोड़ा गया है, जिसके कारण वहाँ हर नागरिक किसी न किसी खेल से जुड़ा होता है। भारत को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर हम आशा करते हैं कि केंद्र व राज्य सरकारें विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा को अनिवार्य बनाकर एक स्वस्थ, अनुशासित और सशक्त समाज के निर्माण में योगदान देंगी।हम एक खेल प्रेमी होने के नाते सकारात्मक आशा करते हैं कि भविष्य में भारत सरकार एवं राज्य सरकारें विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा को अनिवार्य विषय बनाकर एक स्वस्थ, अनुशासित और ऊर्जावान समाज प्रदान करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर सभी खेल प्रेमियों को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।
✍️ द्वारा – डॉ. आलोक कुमार द्विवेदी
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